सितंबर 2010 में ब्राजील में 34वें अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में यूनेस्को द्वारा जयपुर के जंतर-मंतर को विश्व धरोहर में शामिल किया जाना तय हुआ तो राजस्थान आए पर्यटकों के साथ-साथ यहां के लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। जंतर मंतर को विश्व धरोहर में शामिल किए जाने को समस्त भारत नेे तहे दिल से सराहा है। हैरिटेज सूची में शामिल होने के लिए यूनेस्को के पास विश्व भर से 39 प्रविष्टियां आईं थी जिनमें से 7 का चयन किया गया है। उल्लेखनीय है कि प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल जयपुर का जंतर मंतर सबसे विशाल वेधशाला है। यूनेस्को की वल्र्ड हैरीटेज सूची में शामिल होने के साथ ही यह राजस्थान की पहली व देश की 23वीं सांस्कृतिक धरोहर बन गया है। इस वेधशाला से सूर्य और दूसरे आकाशीय पिंडों की स्थितियों का पता लगाया जा सकता है। यहीं से अक्षांस देषांतर रेखाओं और उल्का पिंडों की बदलती दशा का भी पता चलता है। नक्षत्र विज्ञानी आज भी आकाशीय पिंडों की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए यहां आते हैं।
जंतर मंतर का निर्माण जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने कराया था। महाराजा जयसिंह की ज्योतिष और वेध विज्ञान में गहन रूचि थी। जंतर-मंतर के निर्माण के लिए जयसिंह ने स्वयं भी पूर्वी और पश्चिमी ज्योतिशी व वैज्ञानिक प्रणालियों का गहन अध्ययन किया। महाराजा जयसिंह ने सबसे पहली ऐसी ही वेधशाला 1724 में दिल्ली में बनवाई थी उसके 10 साल बाद 1734 में जयपुर का जंतर मंतर बना। जयसिंह ने ऐसी ही अन्य वेधशालाएं मथुरा, उज्जैन और बनारस में भी स्थापित कीं। ये सभी वेधषालाएं ज्योतिश और खगोल के संगम का उत्कष्श्ट नमूना हैं। इनमें स्थापित यंत्रों का निर्माण पत्थर और चूने से हुआ है। मौसम की जानकारी लेना हो, ग्रहों और नक्षत्रों की दिशा का या समय के बदलाव का अनुमान लगाना हो, यह सब यहां से जाना जा सकता है। ज्योतिशियों को भी यहां आकर अपनी सूक्ष्म गणनाएं बैठाने में आसानी होती है।
जंतर-मंतर में कई यंत्र स्थापित हैं जिनमें सम्राट यंत्र, जय प्रकाष यंत्र, राम यंत्र, कपाली यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र व घोटा यंत्र प्रमुख हैं। ये उपकरण समय व खगोलिय घटनाओं की एकदम सटीक जानकारी देते हैं। यहां बना सम्राट यंत्र 144 फुट ऊंचा है जिसकी चोटी से दिशाओं की एकदम सही गणना की जा सकती है। ये यंत्र घंटे मिनट तथा सेकंड तक की सटीक जानकारी दे पाने में सक्षम हैं। इन यंत्रों का आकार तथा विन्यास वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया गया है। यहां स्थित रामयंत्र का इस्तेमाल ऊंचाई नापने के लिए होता है। सम्राट यंत्र का उपयोग वायु परीक्षण के लिए किया जाता रहा है। इसमें स्थित विश्व की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी दो सैकंड तक की सटीक जानकारी देती है। यहां से ही सूर्योदय व सूर्यास्त की जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है।
जंतर-मंतर को देखने हर साल सात से आठ लाख तक विदेशी पर्यटक आते हैं। यह वेधशाला भारत के गौरवशाली अतीत का अहसास कराती है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले राजस्थान में भरतपुर स्थित केवला देवी राष्ट्रीय पक्षी अभ्यारण्य को भी यूनेस्को की सूची में प्राकृतिक विश्व धरोहर का दर्जा मिल चुका है।
गौरतलब है कि जंतर मंतर को यूनेस्को की वल्र्ड हैरिटेज लिस्ट में शामिल करवाने के लिए पुरातत्व व संग्राहलय विभाग दो साल से कवायद कर रहा था। आज भी यहां का जंतर मंतर अन्य स्थापित वेधशालाओं से सबसे अच्छी स्थिति में है। इसके लगभग सभी यंत्र आज भी बिल्कुल सही गणना दे पा रहे हैं। ज्योतिशियों का मानना है कि इसकी बनावट इतनी सटीक है कि अगले तीन हजार साल तक भी इसकी गणनाएं प्रभावित नहीं होंगी।

एक टिप्पणी भेजें