लखनऊ। अवध के शासकों और उनके वफादारों के वंशजों को हर साल मिलने वाली पेंशन यानी वसीका की रकम अब केवल खानापूर्ति भर बनकर रह गई है। नवाब शाहिद अली खां के बैंक खाते में हाल ही में तीन रुपये 21 पैसे जमा हुए। यह रकम उनके अवध के नवाबों के वंशज होने का दस्तावेजी सबूत तो है, लेकिन उनके लिए यह तीन रुपये 21 पैसे अब गहरी टीस भी देते हैं। वसीका उस धन के ब्याज को कहा जाता है जो अवध के नवाबों और बादशाहों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को उसके प्रशासनिक खर्चों के लिए कर्ज के रूप में दिया था। समझौते के अनुसार उस ब्याज को उनके वफादारों और वंशजों को पीढ़ी दर पीढ़ी मिलता रहना था। उत्तर प्रदेश के वसीका विभाग के अनुसार, इस समय करीब 900 वंशजों को यह शाही पेंशन दी जाती है, जिसकी कुल राशि महज 22 हजार रुपये मासिक है।
यह रकम पीढ़ियों में बंटते-बंटते इतनी घट चुकी है कि अब अधिकांश लोगों को कुछ रुपये ही मिलते हैं। पहले यह पेंशन चांदी के सिक्कों में मिला करती थी। बाद में भारतीय रुपये में मिलने लगी है। रुपये का अव बहुत अवमूल्यन हो गया है, इसलिए वसीका की रकम एक प्रतीक जैसी हो कर रह गई है। इस दो-चार, दस-बीस रुपये की पेंशन पाने के लिए वसीका दफ्तर आने में लोगों के सैकड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं।
अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह के वजीर रफीकउद्दौला बहादुर के परपोते नवाब शाहिद अली खां को हर तीन महीने में चार रुपये 19 पैसे और नवाब आसिफउद्दौला की मां बहू बेगम के हिस्से का तीन रुपये 21 पैसे सालाना वसीका मिलता है। नवाब शाहिद अली खां के अनुसार, यह रकम भले ही मामूली हो, लेकिन यह हमारी शाही विरासत की पहचान है। उन्होंने बताया कि बहू बेगम ने ईस्ट इंडिया कंपनी को करीब चार करोड़ रुपये और मुहम्मद अली शाह ने 1839 में बारह लाख रुपये कर्ज दिया था। इन्हीं रकमों के ब्याज से यह वसीका शुरू हुआ था।
रॉयल फैमिली ऑफ अवध के महासचिव शिकोह आजाद के अनुसार, उनके पिता नवाब फैयाज अली खां को हर महीने केवल 281 रुपये 45 पैसे मिलते हैं। वे कहते हैं, आजादी से पहले यह रकम चांदी के सिक्कों में मिलती थी, मगर 1947 के बाद गिलट के सिक्के दे दिए गए उसी दिन से अन्याय शुरू हो गया। उन्होंने बताया कि पीढ़ियों के बढ़ने से रकम और घटती चली गई। अब संगठन इस मसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी में है। उन्होंने कहा, अगर भारत की अदालत से इंसाफ नहीं मिला, आजाद कहते हैं, तो हम अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाएंगे। रॉयल फैमिली का दावा है कि 1947 में सत्ता हस्तांतरण के दौरान ब्रिटेन ने भारत सरकार से लिखित समझौता किया था, जिसमें कहा गया था कि जब तक सूरज-चांद रहेगा, अवध के शासकों के वंशजों को वसीका उसी तरह दी जाएगी जैसे ब्रिटेन देता रहा है। शिकोह आजाद का कहना है कि अब सरकार को वसीका की रकम 4 फीसद से बढ़ाकर मौजूदा ब्याज दर (9 फीसदी) के अनुरूप करनी चाहिए, या फिर 200 साल का ब्याज अंतर बतौर रॉयल्टी पैकेज दिया जाना चाहिए।
वसीका विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, पहले वंशजों की संख्या कम थी, इसलिए उन्हें पर्याप्त रकम मिल जाती थी, लेकिन अब वंशजों की संख्या बढ़ने के साथ हिस्से घटते गए। वर्तमान में वसीके का 95 प्रतिशत हिस्सा बहू बेगम, मुहम्मद अली शाह और नवाब शुजाउद्दौला के वंशजों को, और 5 प्रतिशत हिस्सा उनके वजीरों व खिदमतगारों के परिवारों को मिलता है। अवध की यह शाही पेंशन आज भले कुछ रुपये में सिमट गई हो, मगर यह भारत की आर्थिक और औपनिवेशिक इतिहास की जिंदा गवाही बनी हुई है और अब इसके वंशज इसे न्याय की लड़ाई में बदलने जा रहे हैं।
यहां यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि केवल मुसलमान नबावों या जागीरदारों ने ही नहीं रकम दी थी ईस्ट इंडिया कंपनी को बल्कि मारवाड़ी बनिये ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्य बैंकर थे। वे न सिर्फ कर्ज देकर ब्याज वसूलते थे बल्कि ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से रकम एक जगह से दूसरी जगह भिजवाने की व्यवस्था भी करते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीयों पर जुल्म ढा रही थी और उसमें मुख्य सहयोगी यहीं के सेठ-साहूकार, कारोबारी थे।
प्रस्तुति: एपी भारती (पत्रकार, संपादक पीपुल्स फ्रैंड, रुद्रपुर, उत्तराखंड)
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