वयस्कों की समस्या बच्चों में बढ़ी पित्ताशय की पथरी की समस्या, कम शारीरिक गतिविधि अधिक जंक फूड व तले-भुने खाद्य पदार्थों ने बढ़ाई परेशानी Health



नई दिल्ली। कभी व्यस्कों की बीमारी रही पित्ताशय की पथरी अब भारत में बच्चों में भी यह बढ़ती जा रही है। मोबाइल के जमाने में बच्चे कम शारीरिक गतिविधि, खेल-कूद कर पाते हैं और बाजार में उपलब्ध तैयार खाद्य पदार्थों का ज्यादा सेवन करते हैं, इससे समस्या बढ़ती जा रही है। अब बाल रोग विशेषज्ञ लोगों को अधिक जागरूक होने और बचाव की सलाह दे रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के अस्पतालों और क्लीनिक में बच्चों में पित्ताशय की पथरी के मामले बढ़ रहे हैं, जो बच्चों के स्वास्थ्य में एक चौंकाने वाला बदलाव है। सामान्यतः पित्ताशय की पथरी मध्य आयुवर्ग के लोगों की समस्या माना जाता था, लेकिन अब छह साल के बच्चों में भी पित्ताशय की पथरी की समस्या देखी जा रही है जिससे चिकित्सकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों में चिंता बढ़ गई है। पित्ताशय की पथरी, पित्ताशय में बनने वाले छोटे-छोटे कठोर पत्थर होते हैं। ये पित्त में मौजूद कोलेस्ट्रॉल या बिलीरुबिन से बनते हैं। जब ये पत्थर पित्ताशय या पित्त नली में फंस जाते हैं, तो पेट में तेज दर्द, मतली, उल्टी और पाचन की समस्या हो सकती है।

‘इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स द्वारा पांच बड़े शहरों में हाल में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि पेट दर्द की शिकायत लेकर पहुंचने वाले लगभग हर 200 में से एक बच्चे में पित्त की पथरी की शिकायत पाई गई। यह समस्या खासकर उन बच्चों में अधिक देखी गई है जो आलसी होते हैं और अधिक जंक फूड व तला-भुना खाना खाते हैं। एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ. रमण कुमार ने समय पर सही इलाज की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पित्ताशय की पथरी का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। कई मामलों में खासकर जब बच्चों में कोई लक्षण नहीं होते, हम दवाओं और खानपान में बदलाव से इलाज कर सकते हैं। लेकिन जब पथरी की वजह से पित्ताशय में सूजन या पैनक्रिएटाइटिस जैसी समस्या हो जाती है, तब सर्जरी करनी पड़ सकती है। बताया कि जहां बच्चों में लक्षण साफ दिखाई देते हैं या कोई समस्या होती है, वहां लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी सबसे प्रचलित उपचार है। लेकिन उन बच्चों में मुश्किलें आती हैं जिनमें अल्ट्रासाउंड में पथरी पाई जाने के बावजूद कोई खास लक्षण नहीं होते। कहा कि बिना लक्षण वाले बच्चों के लिए या तो कुछ समय इंतजार किया जाता है या जरूरत पड़ने पर सर्जरी की जाती है।

उन्होंने कहा कि माता-पिता को इंतजार करने के दौरान उत्पन्न होने वाली जटिलताओं के जोखिम को समझना चाहिए और आपसी समझ के आधार पर उचित निर्णय लेना चाहिए। कई माता-पिता पीलिया या अग्नाशय की सूजन जैसी परेशानी होने का जोखिम नहीं लेना चाहते और इसलिए जल्दी सर्जरी करवाने का विकल्प चुनते हैं।

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